वांछित मन्त्र चुनें

व॒व्रासो॒ न ये स्व॒जाः स्वत॑वस॒ इषं॒ स्व॑रभि॒जाय॑न्त॒ धूत॑यः। स॒ह॒स्रिया॑सो अ॒पां नोर्मय॑ आ॒सा गावो॒ वन्द्या॑सो॒ नोक्षण॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vavrāso na ye svajāḥ svatavasa iṣaṁ svar abhijāyanta dhūtayaḥ | sahasriyāso apāṁ normaya āsā gāvo vandyāso nokṣaṇaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

व॒व्रासः॑। न। ये। स्व॒ऽजाः। स्वऽत॑वसः। इष॑म्। स्वः॑। अ॒भि॒ऽजाय॑न्त। धूत॑यः। स॒ह॒स्रिया॑सः। अ॒पाम्। न। ऊ॒र्मयः॑। आ॒सा। गावः॑। वन्द्या॑सः। न। उ॒क्षणः॑ ॥ १.१६८.२

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:168» मन्त्र:2 | अष्टक:2» अध्याय:4» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:23» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वानो ! (ये) जो (स्वजाः) अपने ही कारण से उत्पन्न (स्वतवसः) अपने बल से बलवान् (धूतयः) जाने वा दूसरों को कम्पानेवाले मनुष्य (वव्रासः) शीघ्रगामियों के (न) समान वा (अपाम्) जलों की (सहस्रियासः) हजारों (ऊर्मयः) तरङ्गों के (न) समान (आसा) मुख से (वन्द्यासः) वन्दना और कामना के योग्य (गावः) गौएँ जैसे (उक्षणः) बैलों को (न) वैसे (इषम्) ज्ञान और (स्वः) सुख को (अभिजायन्त) प्रकट करते हैं उनको तुम जानो ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जो पवन के समान बलवान्, तरङ्गों के समान उत्साही, गौओं के समान उपकार करनेवाले, कारण के तुल्य सुखजनक दुष्टों को कम्पाने भय देनेवाले मनुष्य हों, वे यहाँ धन्य होते हैं ॥ २ ॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ।

अन्वय:

हे विद्वांसो ये स्वजाः स्वतवसो धूतयो वव्रासो नापां सहस्रियास ऊर्मयो नासा वन्द्यासो गाव उक्षणो नेषं स्वश्चाभिजायन्त तान् यूयं विजानीत ॥ २ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वव्रासः) सद्यो गन्तारः। अत्र व्रजधातोर्बाहुलकादौणादिको डः प्रत्ययः द्वित्वञ्च (न) इव (ये) (स्वजाः) स्वस्मात्कारणाज्जाताः (स्वतवसः) स्वकीयबलयुक्ताः (इषम्) ज्ञानम् (स्वः) सुखम् (अभिजायन्त) (धूतयः) गन्तारः कम्पयितारश्च (सहस्रियासः) सहस्राणि (अपाम्) जलानाम् (न) इव (ऊर्म्मयः) तरङ्गाः (आसा) मुखेन (गावः) धेनवः (वन्द्यासः) वन्दितुं कामयितुमर्हाः (न) इव (उक्षणः) वृषभान् ॥ २ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। ये वायुवद्बलिष्ठास्तरङ्गवदुत्साहिनो गोवदुपकारकाः कारणवत् सुखजनका दुष्टानां कम्पयितारो मनुष्याः स्युस्तेऽत्र धन्या भवन्ति ॥ २ ॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे, जी वायूप्रमाणे बलवान, तरंगाप्रमाणे उत्साही, गाईप्रमाणे उपकारक, कारणाप्रमाणे सुखकारक, दुष्टांना भयकंपित करणारी माणसे असतात, ती धन्य होत. ॥ २ ॥